Wednesday 21 May 2014

साजिश

तुम आओगी
दबे पाँव
किसी रोज
रख कर हर विश्वास ताक पर
मुझे चूमने
मैं कर लूँगा
तुम्हें कैद
आईने मे ,
और तुम्हारे लाख मना करने  पर भी
नहीं करूंगा आजाद
के जब तक
मैं
तुम्हें
तुम्हारे जितना नहीं चूम लेता
और इस बार
मेरे पास नहीं होगा
तुम्हारे लिए कोई
तोहफा 

अधूरा छूटा चुम्बन

मुझे यकीन है 
तुम आओगी, 
उस शाम का अधूरा छूटा चुम्बन पूरा करने 
उन्हीं घर की उतरती सीडियों पर 
लेकर बेस्वाद सा बहाना, 
चीनी ,पत्ती या पुरानी किताब का 
चूमोगी मुझे बेसब्री से 
और समेट लोगी 
मुझे अपने आलिंगन मे 
हर बार की तरह ,
लेकिन इस बार आंखे खोलकर ,
मैं देखना चाहता हूँ
तुम्हारी आंखो मे तपते रेगिस्तान को ,
भरना चाहता हूँ

उसे लाल स्याहीं से
डूबना चाहता हूँ
उसमे कागज की कश्ती की तरह
जल्दी से ,बहुत जल्दी से ...........

बिगुल

मै फेंक देना चाहता हूँ ,
अपनी महबूब का फोटो अपने पर्स से ,
और लगा लेना चाहता हूँ
मंगल पांडे को
खाना चाहता हूँ
भर पेट कारतूस
भरना चाहता हूँ
अपनी जेबे गुलाल से
रंग देना चाहता हूँ
हर मुसाफिर का मुँह 
मैं जला देना चाहता हूँ
आजादी के दिन के तमाम अखबार
मैं डाल देना चाहता हूँ
जलते टायर उनके गले मे
जिन्होनें अपने आप को अंदर से मार लिया है
और सीख लिया है
हर लूट पर चुप रहना
मैं पीना चाहता हूँ
पानी सिंधूर घोलकर
फुंकना चाहता हूँ बिगुल
बीच चोराहे पर खड़ा होकर
के साथी बिना लड़े कुछ नहीं मिलता
बिना लड़े लूट जाया करती हैं
अस्मते बंद तिजोरियों की
जल जाया करती है
बस्तिया मेहनत कश इंसानों की
के साथी बिना लड़े खुछ नहीं मिलता 

बेनाम कविता

मुझे डर लगता है 
तुम्हारी इन बोलती आंखो से 
मैं भर देना चाहता हूँ
इनमें तेजाब 
दफना देना चाहता हूँ 
हर वो कलम 
जिस से मैने कभी तेरा नाम लिखा  
हटा देना चाहता हूँ
अपनी डायरी का वो पन्ना 
जहाँ गाड़ा था
हमने अपना पहला चुंबन बड़े शौंक से
मैॆँ जला देना चाहता हूँ
वो काली कमीज
जिसे पहन कर मैं तुझसे मिलने आता था
मैं छिन लेना चाहता हूँ
उन चमकते सितारो से उनका नूर
कर देना चाहता हूँ

उन्हे बेजान
जिन्हें देखकर तेरी याद आती थी
बांध देना चाहता हूँ
अतीत मे जाकर
उन टिक-टिक करती सूँइयो को
जहाँ कभी तेरा इंतेजार हुआ करता था
मैँ तोड़ देना चाहता हूँ
उन छ्तो के मुंडेरे
जहाँ तपते थे हम

तुम्हे देखने क लिए
जेठ की दोपहर मे
भर देना चाहता हूँ
तेरी साइकिल के पहियों मै पेट्रोल
और रख देना चाहता हूँ
जलती मशाल तेरी दहलीज़ पर
गिरा देना चाहता हूँ
गली के तमाम खम्बे
जहाँ से तू मुड़कर देखती थी
लूट लेना चाहता हूँ
तेरे आँगन मै खिलते पेड़ की अस्मत को
फूँक कर एक एक पत्ता उसका
टांग देना चाहता हूँ 

तेरे कमरे मे
अधजले कागज
जिसे तूने कभी प्रेम-पत्र का नाम दिया था
फेंक देना चाहता हूँ
अफवाहों से भरे बर्तन,
काट देना चाहता हूँ
तेरी तिलिस्मी जुबान
भर देना चाहता हूँ
तेरे सपनों मे जलती बस्तियाँ,
लाशें ,लहू

मातमी चींखे,
बिलखते बच्चे 

काली फटी सलवार ,
खून से लथपथ चादर
करना चाहता हु कैद तुझे
चावल की गुड़िया मे
रंगना चाहता हूँ

सिंधुर से
और दफना देना चाहता हूँ
काली आमवास के दिन
किसी कुएँ के नजदीक
के मुझे डर लगता है
तुम्हारी इन बोलती आंखो से 

यकीन जानिए

यकीन जानिए 

एक दिन पहले से सता रहा था 
तुम्हारे ना बोलने का अहसास
और हमने सोच लिया था 
हम नहीं रोएँगे 
सरफिरे आशिको की तरह 
बंद कमरो मे , 
नहीं मांगेगे तुमसे ना बोलने का कारण 
लेकिन हमने मांग लिया 
और
हम हार गए
हम बनाना चाहते थे
तुम्हें हमसफर
पलट कर अपनी डायरी से अतीत के पन्ने
खोलकर हर एक दफन राज
करके अपने आप को नंगा
जला कर अपना अतीत
जो समेटा था - बेजान पन्नों पर
करना चाहता था एक नई शुरुवात
जो हो ना सकी
लेकिन तुम रहोगी मुझे याद ताउम्र
उस कहानी ,
कहानी के किरदारो की तरह
जो मेरी माँ ने मुझे कभी
बचपन मे सुनाई थी
............

मेरे गाँव की सुनसान सड़क-

मेरे गाँव की सुनसान सड़क-
हम मिलते है रात मे अक्सर 
वो करती है मुझसे बातें 
ठहर कर 
वहाँ चलने वाली ठंडी हवाएँ 
चूमती है मुझे 
मेरी अघोषित प्रेयसी से बेहतर 
उसकी कोख मे पल रहे 
कीट पतंगे 
करते हैं मेरा इंतेजार बेसब्री से
वो नहीं है नाराज मुझसे
के मे नहीं जानता
हम पहली द्फ़े कब मिले थे
ना याद है मुझे अपनी सालगिरा
लेकिन
दुत्कार देती है मुझे वो
जब पहन पुमा के सेंडिल
मैं जाता हूँ उस से मिलने
क्योंकि
उसे पसंद है ग्रामीण चप्पल
उसे नहीं अच्छी लगती सिगरेट
वो पीती है

अधजली बीड़ियाँ
जो छोड़ जाते हैं
खुछ अच्छे लोग

वो शहर नही जाती 
और जाना भी नही चाहती
वो मेरे गाँव की सुनसान सड़क
हम करते है बातें रात मे अक्सर

ठहर कर ------

--अभिनव गोयल

समय 1-34 रात के और मुझे सता रही है तुम्हारी याद -- उस रात की अधूरी कविता ।
डरती है मेरी सड़क इस शहर से , मे बुलाता हु इसे प्यार से _____
सुना है तुम्हारे शहर मे जलेबी देर से देने पर गोली मार दी जाती है- असुविधा के लिए खेद है- सोचने का दिल नहीं है -- कभी कभी बिना सोचे भी लिखना चाहिए ज्यादा नहीं लिखूगा मुझे याद आ रहा है की कनही किसी को बुरा ना लग जाए । यकीन जानिए शिकायत का मौका नहीं देनेगे ।