Tuesday 25 November 2014

तुम और तुम्हारा शहर

तुमसे 
तुम्हारे शहर से 
नहीं किया जा सकता प्रेम 
तुम्हारी कोख ने जन्मे है 
हमेशा से दंगे 
पैदा  की है 
नाजायज
खुद को तोड़ देने वाली चुप्पी 
जब से  सीखा है तुमने
तर्को को गढ़ना 
भूला है,
सिसकियों और चींख-पुकारों मे फर्क करना 
तब से बू 
आने लगी है
 तुम्हारे निकले शब्दों से 
जिन्हे भूलने-भुलाने 
दफनाने 
बहाने 
के असफल प्रयासों मे जलायी जाती है 
चाँद सी ठंडी रातें 
फूंके जाते है कलजे 
तलाशे जाते है विकल्प 
लिखे जाते है 
एक तर्फे लंबे लंबे खत