Tuesday 21 April 2015

चिमनियों वाले शहर

उस लड़के के पास है निरी उदासी , जिसे आटे मे गुंथ खाया नही जा सकता , उसकी मुर्दा आँखों में भूख या तकलीफ़ नही कोरी शून्यता है। उसे नही होना जीत कर इतिहास मे दर्ज, नही तलाशने पारस पत्थर ,  उसके पास लड़की के लिए खारे आँसू नही जिस्म पर उफनते रोंये हैं, ठहरते पानी सा है दुख और पथराई आँखों ने रोने से कर दिया है मना । उसके शहर मे उडती है राख , होती है तेजाबी बारिशें, परिंदों को नही मिलता एक उडान भर पानी , चिडियों को नही है अनुमति घोंसले बनाने की , जलती चितांओ से रोशन है घर, सवालों का नाजायज बता गर्भपात किया जा रहा है, ,शहर मे  कुचल दिये गये है न्याय और बराबरी के सपने , स्कूलों को तोड कारोखानों में बदल दिया गया है , शहतूत की तरह सड़ती लाशों की आँखे अपने ब्यान दर्ज करवाने को सडक पर उग आई हैं  , छाया पिघलने लगी है, महज पछतावों का सैलाब है और ये शहर बसंत का इंतजार नही करता, नींद की गोलियों से भी कमजोर हो गये हैं उसके तर्क , उसे तलाशने हैं घुटती साँसों से चलने वाली चिमनियों वाले शहर , शीशियों मे बंद कर छुपा दी गई हैं उम्मीदें, उसे याद करना  प्रसव पीडा से गुजरना है , महज अफवाहें बिकती है , उसका छूना  कत्थई निशान नही थकान से भरी सलवटें छोडता है, अमलतास के फूलों से आती है तम्बाकू की गंध....

जलती सिगरेटों से दर्ज की जायें स्तनों पर मुलाकातें
खुदखुशी की रात लिखें जाय़ें लम्बे शिकायती पत्र


दुआ है कि हो बेतरह दुख और मैं तुम्हे याद आऊं

Friday 17 April 2015

करवटें

 ये वो समय है जब अकेलापन मौत से तीन गुना ज्यादा असहाय और दिल के पीछे का तनाव जानलेवा। इन स्याह रातों में वो टूटा नही के जैसे दिल टूटता है किसी सर्द सुबह किसी तस्वीर मे खोकर , नैतिक अनैतिक सवालों के बीच , ना बिखरा किसी सिंधूर की तरह , बस खत्म हो गया रेतिले सपनों की तरह बिना आवाज किये , उसे मांगी दो उधार कि सांसे भी ना मिली। उसकी माँ करती रही इन्तेजार उसके घर लौटने का , वो नही पढ़ पाया बीच तैरती खामोशी और चीडों पर चाँदनी, नही छोड पाया बेख्याली मे लडकी का नाम अपने नाम के साथ बीच  किताबों मे, नही काले होने दिए गये उसके होंठों के ऊपर के रोयें , वो ना खोज पाया रातों में  आत्महत्या के आसान तरीके , उसे नही समझाया गया के अंधरे में डूब कर मरना नदी में डूबरकर मरने से कँही अधिक त्रासद है , वो नही चूम पाया दिल मे धडकती आँखे ना भर सका उनमे तारों के रौशनी , ना पहन सका सर्दियों मे उसके हाथ के बने मोजे , किसी चिठ्ठी पर महज लिखा रह गया दुनिया का सबसे पवित्र हँसना , उसके हिस्से थी बस करवटें, उसे प्रतिबंधित किया जाये , तोडी जाये उसके कमरे मे रखी सुराही, खत्म की जाये उसकी कलम की स्याही और फिर तोड़ी जाये उसकी निब के वो लिख ना पाये जिंदगी । निशान छोड़ती कोशिशों को समेटा ना जाये, लिफाफों मे बंद किया जायें उसके कस्बाई सपनों को, पढाया जाये मार्क्स और प्रेम को अर्थशास्त्र समझा जाये,  छीन लिये जाएं उस लडके से उसके अँधेरे और तेज उजाले मे उसका कत्ल किया जाये .

ये इन्सोमिआ है या जर्जर शरीर को जिंदा रखने की लहूलुहान कोशिशें, या फिर ऐया भय जो कभी य़हूदियों के दिल मे रहा होगा
उसे वहम समझा जाये .......

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उसने बेवफाई तब की जब यकीन हदों पर था...?

Monday 13 April 2015

शून्य और कुछ के बीच

कभी कभी उदासी के कारण नहीं होते बस उदास होना होता है। वो लड़का तलाशता है कविताओं में जीवन और उस लड़की की आँखों में पहली मुलाकात , वो शून्य और कुछ के बीच कंही है, ना शहर में मौत आती है और ना नींद और रातें असहनीय होती जाती है बेतरह , उसने ना जाने कितनी रातें जलाकर खोज लिए हैं, सीलन भरी दीवार पर लटके अपनी उम्र खो चुके कैलण्डर के पीछे के कोने जँहा महज उदासी को छिपाया जा सकता है ख़त्म नहीं किया जा सकता जितनी आसानी से उस लड़के ने किसी अधजली रात नदी मे खुद को बहा दिया था  , रातें सर्द सुबह की हवा में तैरते धुँए से गहरी है जिनमे साँस लेना सूखे पत्तों पर लड़की का नाम लिखकर इकठ्ठा करना था। किसी उदास रात बहार तो निकलो और देखो तुम्हारी परछाई कैसे डूबती है।  इन डूबती रातों को सिगरेट से नहीं बहकाया जा सकता , सब बेमानी होता है इन रातों में आँखे पत्थरा जाती है और उसने पहली दफे जाना कि लडकी का ना होना किताबों से नही भरा जा सकता ।