Wednesday 14 January 2015

तुम्हारा होना

सुनो ना
कुछ बतमीज शब्द 
जो इतराकर सांँस लेने लगे थे
तुम्हारे एक तन्हा लफज़ से 
पानी हो गए है।
कविताए बेस्वाद
किताबे बेमतलब
अंँधेरे और अँधेरे हो गए है
राते तुम्हारे कभी ना लिखे
खत्तो सी लम्बी
चाँद छोटा
उम्मीदे बर्फ
और हँसी अपराधिक हो गई है
लहजा किताबी
चेहरा सवालों से पीला
दिन जेल से आजाद
सुखी हो गए है।