Wednesday, 20 August 2014

चाहत

चाहत को बुना है कुछ यूँ
जैसे चिड़िया बुनती है
घोंसले किसी शाख पर
उसमे छिपाया है
अपना हर बार का मिलना
उस दोपहर का चूमना
तुम्हारी मचलती उंगलिया
मेरा धड़कता सीना
और चाहत है
की तुम इस चाहत को
अपना लो या
गला खोंटकर यहीं दफना दो
कहीं प्रेम से बुनी ये  चाहत
आत्मघाती हमले की तरह
निर्दयी ना हो जाए
और ना पकड़ ले
सनक का रास्ता
इस रास्ते की हर नई सीडी पर रखा कदम
तोड़ चुका होगा वापिस की पुरानी सीडी
वहाँ बंद हो चुका होगा
प्रेम का हर दरवाजा
फिर होगी
तो सिर्फ
हार और जीत
तुम्हें पाने की
वहाँ तुम नहीं होगी
मेरी खोसले सी बुनी चाहत नहीं होगी
होगी तो सिर्फ सनक
तुम्हें पाने की