Friday 17 April 2015

करवटें

 ये वो समय है जब अकेलापन मौत से तीन गुना ज्यादा असहाय और दिल के पीछे का तनाव जानलेवा। इन स्याह रातों में वो टूटा नही के जैसे दिल टूटता है किसी सर्द सुबह किसी तस्वीर मे खोकर , नैतिक अनैतिक सवालों के बीच , ना बिखरा किसी सिंधूर की तरह , बस खत्म हो गया रेतिले सपनों की तरह बिना आवाज किये , उसे मांगी दो उधार कि सांसे भी ना मिली। उसकी माँ करती रही इन्तेजार उसके घर लौटने का , वो नही पढ़ पाया बीच तैरती खामोशी और चीडों पर चाँदनी, नही छोड पाया बेख्याली मे लडकी का नाम अपने नाम के साथ बीच  किताबों मे, नही काले होने दिए गये उसके होंठों के ऊपर के रोयें , वो ना खोज पाया रातों में  आत्महत्या के आसान तरीके , उसे नही समझाया गया के अंधरे में डूब कर मरना नदी में डूबरकर मरने से कँही अधिक त्रासद है , वो नही चूम पाया दिल मे धडकती आँखे ना भर सका उनमे तारों के रौशनी , ना पहन सका सर्दियों मे उसके हाथ के बने मोजे , किसी चिठ्ठी पर महज लिखा रह गया दुनिया का सबसे पवित्र हँसना , उसके हिस्से थी बस करवटें, उसे प्रतिबंधित किया जाये , तोडी जाये उसके कमरे मे रखी सुराही, खत्म की जाये उसकी कलम की स्याही और फिर तोड़ी जाये उसकी निब के वो लिख ना पाये जिंदगी । निशान छोड़ती कोशिशों को समेटा ना जाये, लिफाफों मे बंद किया जायें उसके कस्बाई सपनों को, पढाया जाये मार्क्स और प्रेम को अर्थशास्त्र समझा जाये,  छीन लिये जाएं उस लडके से उसके अँधेरे और तेज उजाले मे उसका कत्ल किया जाये .

ये इन्सोमिआ है या जर्जर शरीर को जिंदा रखने की लहूलुहान कोशिशें, या फिर ऐया भय जो कभी य़हूदियों के दिल मे रहा होगा
उसे वहम समझा जाये .......

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उसने बेवफाई तब की जब यकीन हदों पर था...?

1 comment:

  1. हाय उस ज़ूदपशेमाँ का पशेमाँ होना

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