तुमसे
तुम्हारे शहर से
नहीं किया जा सकता प्रेम
तुम्हारी कोख ने जन्मे है
हमेशा से दंगे
पैदा की है
नाजायज
खुद को तोड़ देने वाली चुप्पी
जब से सीखा है तुमने
तर्को को गढ़ना
भूला है,
सिसकियों और चींख-पुकारों मे फर्क करना
तब से बू
आने लगी है
तुम्हारे निकले शब्दों से
जिन्हे भूलने-भुलाने
दफनाने
बहाने
के असफल प्रयासों मे जलायी जाती है
चाँद सी ठंडी रातें
फूंके जाते है कलजे
तलाशे जाते है विकल्प
लिखे जाते है
एक तर्फे लंबे लंबे खत
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