Thursday 10 December 2015

इक्कीस की उम्र


लड़का देख रहा है
दुनिया बदलने का सपना 
मांग रहा है 
आदमी होने का हक
नकार रहा है 
तयशुदा रस्में 
सोच रहा है कितनों ने पढ़कर 
सिमोन, सार्त्र, प्रभा 
ठुकराया होगा समाज
गिराया होगा 
मजबूती सेअनकहा गर्भ
कितनों ने 
बनना चाहा होगा 
इक्कीस की उम्र में 
फैनन

Monday 30 November 2015

प्रेम, विद्रोह, ईमानदारी

बहुत बार 
नहीं तलाशने होते 
मीठे पानी के झरने 
शहर में नदियां
शब्दकोषों में प्रेम, 
विद्रोह
ईमानदारी के मतलब
किसी के लिखे मैं
नहीं तलाशना होता
खुद को
आत्माओं को बचाए रखने के लिए
नहीं करनी होती बहस 

बहुत बार
हमें कहना होता है
पानी को पानी
दुख को दुख
डर को डर

Tuesday 24 November 2015

आत्महत्या की रात

I शहर में कत्लेआम के बाद की मनहूस उदासी क्यूं हैं, उस लडके के दिल की जेबों में स्मृतियों के कत्थे जम गए हैं जिन्हें तोडने के लिए वो देर रात किताबें जलाता है..आंखे न रास्ते होती हैं और न मंजिले और शब्दों के साथ बात करते रहना सूखी रोटियां चबाने जितना मुशिकल होता है. वो लडका सीख रहा है नकारना जैसे शब्दों को लिखना ये जानते हुए भी कि अगर उसने सीख लिया लिखना वो तब भी नहीं कर पाएगा अपने दुखों से पलायन..लडकी की गैरमौजूगी यात्राओं के दरम्यां काटती है वैसे ही जैसे कोई सीखता है नया नया तंबाकू खाना बावजूद इसके वो यात्राओं में कभी साथ नहीं रही..
काश उसे आता भेडिये की तरह शब्दों को चबाना
खेतों में सुरंगे बनाना
अनसुलझी अफवाहों को सुलझाना
क्या दर्ज करवाना चाहिए किसी अदालत में मुकदमा समय गुजारने को.. स्मृतियों को क्रमबध करने से बेहतर है लिखी जाएं फौजी कैंपों में शरीर दागने वाली रातें, किसी राहगीर को मिल जाए अपने किसी की लाश...
जीने के लिए हर किसी के पास होने चाहिए बडे दुख.. बडे दुख अक्सर छोटे दुखों को खा जाते हैं..
जिस किताब में उसने रखे हैं लडकी के खत उसी किताब में उसने रखी हैं सल्फास की गोलियां.. आत्महत्या की रात वो पढ़ना चाहेगा खतो में लिखा जीवन कई बार..


सुनो कभी बैठना मेरे पास मैं सुनाऊंगा तुम्हे एक बर्बादी की कहानी तुम्हारे नाखूनों को खुरचते हुए .. क्या तुम्हारी आंखे अब भी उतनी ही गहरी हैं ....क्या तुम अब भी वैसी ही महकती हो जानां 

Sunday 9 August 2015

रातें बुराइयों का घर होती हैं

हां सच 
वो नही जानता 
कैसे होता है जीना....
जैसे तुम नही जानती 
दाह संस्कार के बाद 
राख से निकालते हुए 
किसी आदमी की हड्डियों की गंध
असहनीय क्षणों में 
सस्ते तंबाकू का स्वाद
सहानुभूति का रिवाज
बंद कमरों का विलाप 
छतों से टपकता पानी
बारिश में धूली तस्वीरें
हथेली पर जन्मी 
गांठों की छुअन
गोंड लोगों का दफनाना
लडकी के फांसी के बाद का समेटना
आंखो को चूमने की चाहना
सिरहाने रखे दर्द
अफवाहों का मौसम
गले लग रोना
लौटना
पछताना 
शून्य
पलायन
निस्तब्धता में गूंजते गाने 
आंखों की उलझने
स्याह कविताओं की रातें
लौथड़ा जो ९ महीने के बाद भी नही जन्मता
पुर्नजन्म का सुख 
इश्वर में आस्था
बर्फ में काम करने वालों का 
खून का रोना
इंतजार के जवाब में 
शव का लौटना 
नाजुक क्षणों के बाद 
सिगरेट की तलब
लाभ हानि का प्रेम
नदी किनारे चावल की गुडिया ॉ
रंगने के टोटके
आंखों में उबलता विद्रोह
पत्थराए हुए शब्द 
हाइगेट कब्रिस्तान

बहुत फर्क होता है भूलने और भूल पाने में...



खालीपन

टूंटी से रिस्ता है
रात भर पानी
उसने लिखे थे
किताबों पर
कुछ पवित्र शब्द
अंधरे में नहीं दिखता
खून का रंग
महीनो से नहीं काटे हैं
नाख़ून
कमरों के कोनो में भरी है
भयानक ऊब
औरत करती है
कपड़ो पर बेढंग सी प्रेस
हर रोज
ऑफिस को जाते हैं
जिंदगी से ऊबे लोग
चुकाना होता है
हर मुस्कान का हिसाब
शीशे पर हैं उम्रदराज करींचे
माँ ने बांध कर भेजी थी
२ कुंवारी चादरें

Tuesday 21 April 2015

चिमनियों वाले शहर

उस लड़के के पास है निरी उदासी , जिसे आटे मे गुंथ खाया नही जा सकता , उसकी मुर्दा आँखों में भूख या तकलीफ़ नही कोरी शून्यता है। उसे नही होना जीत कर इतिहास मे दर्ज, नही तलाशने पारस पत्थर ,  उसके पास लड़की के लिए खारे आँसू नही जिस्म पर उफनते रोंये हैं, ठहरते पानी सा है दुख और पथराई आँखों ने रोने से कर दिया है मना । उसके शहर मे उडती है राख , होती है तेजाबी बारिशें, परिंदों को नही मिलता एक उडान भर पानी , चिडियों को नही है अनुमति घोंसले बनाने की , जलती चितांओ से रोशन है घर, सवालों का नाजायज बता गर्भपात किया जा रहा है, ,शहर मे  कुचल दिये गये है न्याय और बराबरी के सपने , स्कूलों को तोड कारोखानों में बदल दिया गया है , शहतूत की तरह सड़ती लाशों की आँखे अपने ब्यान दर्ज करवाने को सडक पर उग आई हैं  , छाया पिघलने लगी है, महज पछतावों का सैलाब है और ये शहर बसंत का इंतजार नही करता, नींद की गोलियों से भी कमजोर हो गये हैं उसके तर्क , उसे तलाशने हैं घुटती साँसों से चलने वाली चिमनियों वाले शहर , शीशियों मे बंद कर छुपा दी गई हैं उम्मीदें, उसे याद करना  प्रसव पीडा से गुजरना है , महज अफवाहें बिकती है , उसका छूना  कत्थई निशान नही थकान से भरी सलवटें छोडता है, अमलतास के फूलों से आती है तम्बाकू की गंध....

जलती सिगरेटों से दर्ज की जायें स्तनों पर मुलाकातें
खुदखुशी की रात लिखें जाय़ें लम्बे शिकायती पत्र


दुआ है कि हो बेतरह दुख और मैं तुम्हे याद आऊं

Friday 17 April 2015

करवटें

 ये वो समय है जब अकेलापन मौत से तीन गुना ज्यादा असहाय और दिल के पीछे का तनाव जानलेवा। इन स्याह रातों में वो टूटा नही के जैसे दिल टूटता है किसी सर्द सुबह किसी तस्वीर मे खोकर , नैतिक अनैतिक सवालों के बीच , ना बिखरा किसी सिंधूर की तरह , बस खत्म हो गया रेतिले सपनों की तरह बिना आवाज किये , उसे मांगी दो उधार कि सांसे भी ना मिली। उसकी माँ करती रही इन्तेजार उसके घर लौटने का , वो नही पढ़ पाया बीच तैरती खामोशी और चीडों पर चाँदनी, नही छोड पाया बेख्याली मे लडकी का नाम अपने नाम के साथ बीच  किताबों मे, नही काले होने दिए गये उसके होंठों के ऊपर के रोयें , वो ना खोज पाया रातों में  आत्महत्या के आसान तरीके , उसे नही समझाया गया के अंधरे में डूब कर मरना नदी में डूबरकर मरने से कँही अधिक त्रासद है , वो नही चूम पाया दिल मे धडकती आँखे ना भर सका उनमे तारों के रौशनी , ना पहन सका सर्दियों मे उसके हाथ के बने मोजे , किसी चिठ्ठी पर महज लिखा रह गया दुनिया का सबसे पवित्र हँसना , उसके हिस्से थी बस करवटें, उसे प्रतिबंधित किया जाये , तोडी जाये उसके कमरे मे रखी सुराही, खत्म की जाये उसकी कलम की स्याही और फिर तोड़ी जाये उसकी निब के वो लिख ना पाये जिंदगी । निशान छोड़ती कोशिशों को समेटा ना जाये, लिफाफों मे बंद किया जायें उसके कस्बाई सपनों को, पढाया जाये मार्क्स और प्रेम को अर्थशास्त्र समझा जाये,  छीन लिये जाएं उस लडके से उसके अँधेरे और तेज उजाले मे उसका कत्ल किया जाये .

ये इन्सोमिआ है या जर्जर शरीर को जिंदा रखने की लहूलुहान कोशिशें, या फिर ऐया भय जो कभी य़हूदियों के दिल मे रहा होगा
उसे वहम समझा जाये .......

.....
.....  

उसने बेवफाई तब की जब यकीन हदों पर था...?

Monday 13 April 2015

शून्य और कुछ के बीच

कभी कभी उदासी के कारण नहीं होते बस उदास होना होता है। वो लड़का तलाशता है कविताओं में जीवन और उस लड़की की आँखों में पहली मुलाकात , वो शून्य और कुछ के बीच कंही है, ना शहर में मौत आती है और ना नींद और रातें असहनीय होती जाती है बेतरह , उसने ना जाने कितनी रातें जलाकर खोज लिए हैं, सीलन भरी दीवार पर लटके अपनी उम्र खो चुके कैलण्डर के पीछे के कोने जँहा महज उदासी को छिपाया जा सकता है ख़त्म नहीं किया जा सकता जितनी आसानी से उस लड़के ने किसी अधजली रात नदी मे खुद को बहा दिया था  , रातें सर्द सुबह की हवा में तैरते धुँए से गहरी है जिनमे साँस लेना सूखे पत्तों पर लड़की का नाम लिखकर इकठ्ठा करना था। किसी उदास रात बहार तो निकलो और देखो तुम्हारी परछाई कैसे डूबती है।  इन डूबती रातों को सिगरेट से नहीं बहकाया जा सकता , सब बेमानी होता है इन रातों में आँखे पत्थरा जाती है और उसने पहली दफे जाना कि लडकी का ना होना किताबों से नही भरा जा सकता । 

Tuesday 31 March 2015

उसे समंदर नहीं नदी की तलाश थी

अब से पहले उस लड़के के लिए ये शहर बेरहम था . अक्सर रातों में वो फ़ोन में लोग तलाशता  किस से बात की जाये और खुद को खाली पाता . उसे कोई ऐसा नहीं मिलता जिस से बात की जाये . आखिर में वो एक और सिगरेट जलाता फिर ऐसे ही किसी का नंबर तलाशता , और कुछ ना मिलता , एक कॉफ़ी पर प्यार हो जाना , हाँ , उसका होना शहर में नदी होना था हाँ शहर में नदी होना सच , ये सच जेठ की गर्मी जितना सच था , जिसे उसके स्पर्श से मापा जा सकता था . वो लड़की बेतरह पागल निरंतर किनारो की तोड़ती चलती , उसे किसी समंदर में मिलने का दिल नहीं था , लड़के के छूते ही मानो नदी ठहर गयी हो , हालाँकि उसे ऐसा नहीं होना था या ऐसा ये ना वो जानती थी ना वो लड़का , लड़के ने अपना सब सामान उस नदी में फेंक दिआ  था , क्यूंकि उसे ऐसा ही करना था , उसने ऐसा करने से पहले कुछ सोचा नहीं , उसे  नदी चाहिए थी , हाँ नदी , वो लड़का नदी में बहने लगा बेपरवाह , लेकिन अब वो ठहर गयी थी , वैसे भी ये मौसम पतझड़ का है ना, बहुत कुछ रुखा हो गया था , उसे लगता उसकी परछाई से नदी ठहर गयी है  , और ये पतझड़ नहीं उसकी गंध से पत्ते झड़ रहे है , उसे शायद वापिस किनारे पर लोटना चाहिए , उसे शहर में नदी चाहिए कैसे भी ,और अमलतास के फूल  

Tuesday 24 March 2015

डायल किया गया नंबर वैध नहीं है

लड़की उदास है , और फ़ोन बंद , तमाम कोशिशें करने के बाद वो सुनता है तेरी उम्मीद पे ठुकरा रहा हूँ दुनिया को  और उसके नाम चिठ्ठी लिख कर सो जाता है , लड़की के उदास होने के अपने कारण थे जिसे वो लड़का नहीं जान पा रहा था , इन कारणों का एक हिस्सा उसने भी रंगा था किसी बेख्याली में ,  बस वो इतना जान पा रहा था की उसकी उदासी से  उसके शहर में बेमौसमी लू चलने लगी थी , लोगो ने घरो से निकलना बंद कर दिया था , उसके साथ साथ शहर भी सांसे लेना भूल रहा था , जैसे जैसे परछाई डूबने लगती थी उस लड़के को उसका होना चाहिए होता था बेतरह टाइप वाला , उसके होने से शहर में चाँद सी ठंडक रहती थी लोग पीली रौशनी में बैठ कविताओं को सच करते थे , उसके बिना उस लड़के के दिल में था एक डर ,  , नहाते वक्त पानी के बीच ली सहमी सी साँसे , मरे हुए परिंदे , जला हुआ पेड, टूटी हुई चूडियाँ ,सुनी मांग , खारी आँखे , पुराना श्मशान का सपना , ठंडी चिता , रूकी हुई घडी , सुन्न होते हाथ , टूटी कलम , काले पन्ने , सिलन भरी दीवार , बिना कपडो के दिसंबर मे स्टेशन पर पडी लडकी ,  गुम होते सिक्के , खुद ब खुद  डायरी मे  आत्महत्या करते सुखद पन्ने , ट्रेन मे छूटी किताब , खुरदरा असहनीय स्पर्श , बारिश में धुली तस्वीरें , उसके बिना दिन भर की थकान के बाद होती है और थकान , उसका होना सम्भावनों का होना था उस लड़के के लिए, बीच रात मे फिर उठता है और सुनता है डायल किया गया नम्बर स्विच आफ है .

Tuesday 3 March 2015

मेरी तरह तेरा दिल बेक़रार है के नहीं


बेतरह पागलपन
तुम्हारे होने से इन शब्दों ने अर्थ खो दिए है ,, अब मेरे लिए ये शब्द नहीं होते इनमे तुम होती हो , तुम्हारी परछाई , तुम्हारी महक , तुम्हारी बेबाकी ,लापरवाही , बेतरह महोब्बत , जानते हुए भी डूबना ,रह गया है मेरे भीतर ,  तुम्हारे लिए दुनिया एक्सिस्ट नहीं करती ना  ,, कितना मुश्किल है तुम्हारी तरह होना ,यूँ  मेट्रो में सिटी बजाना , छोटी छोटी चीजो को तलाशना और उन्हें जीवन देना,  इतना डूब कर जिंदगी जीना ,, जान ले लोगी बे तुम , और ये तीन रोज इश्क़ कतई नहीं है ,, मै बहुत गैरजरुरी लिखता हु , फिर बोलता हु क्या फर्क पड़ता है, तुम बहुत कुछ छोड़ गयी हो , जिसे कोई भर नहीं सकता , तुम्हारा यूँ खुद को लूटाना आअह ,,, बैठ गया है , सच मैंने बहुत बहुत इकठ्ठा कर लिए है तुम्हे इतनी जल्दी में बिना सोचे जो मिला सब , किसी को लूटने की तरह, जैसे बचपन में हम किसी मेहमान के जाने पर नमकीन बिस्कुट से अपनी जेबे भरते थे , दिल की जेबो में भर लिए है ,, खचाखच ,
मेरे हिस्से का बहुत कुछ रह गया है , तुम्हारे लिए , मिलेंगे किसी खोये हुए शहर में , खूब सारे  खतो के साथ , गुलाबो के साथ , मिलकर भटकेंगे , लोगो को तलाशेगें
जियो लड़की , और हम तुम्हे पकड़ लेंगे तुम बेफिक्र रहो , दुनिया बहुत छोटी है , 

Wednesday 18 February 2015

वो लिखता है चिट्ठी पर जिंदगी

उसे ठहरना है , नये रास्ते के लिए , उसने उसके लिए जानां नाम बुना है , उसका जाना लिखना उसकी आत्मा को छिलता हुआ उसे पवित्र करता है, उसने पहली बार जाना की जहाँ वो अब तक धुँए को ले जाने की तमाम कोशिशें किया करता था, वहाँ तक सिर्फ उसके शब्द पहुँचते है, भीतर गहरे तक उतरते है , अब उसने इस तरह की कोशिशें बंद कर दी है , बहुत शोर , भीड़, लोगो के बीच वो खुद को तन्हा पता है, उसके पास जाना चाहता है, पानी के लिए तरसते रेगिस्तान मे पांच दिन से भटके मुसाफिर की तरह , हर मुलाकात के बाद अगली मुलाकात की तेज इच्छा की तरह , तुम्हे गले मिलने की तरह , शायद कुछ ऐसा है हाँ शायद , हालांकि अब वो शायद जैसे और भी जैसे शब्दो से नफरत करने लगा था , उस रात उसने कहा था वह उस से प्रेम करती है और उसने कहा था की वह भी , भी प्रेम करता है जबकि उसे कहना था वह प्रेम करता है , भी शब्द ने उसकी उस पूरी रात का कत्ल किया था, उसे बीच के रास्ते पर नहीं चलना था, उसने पाश की नई किताब खरीदी है बीच का रास्ता नहीं होता ,उस रात उसने पहली द्फा उसके होंठो को चूमा था, उसके होंठो के निशान उसकी आत्मा पर उतर आये थे, वह बहुत लोगो को , चीजो को नकारना चाहता है, नफरत करना चाहता है, उसे सिर्फ उसका होना है उसके बिना वह नफरत करने लगे प्रेम से , अंधरे से शहर से लोगो से कविताओं से सिगरेट से कम्यूनिस्ट लोगो से , उसे उसके कंधे पर सर रख कर तुम होना है , उसे पहनने है मोजे इत्मिनान से गले मिलना है पत्थर होना है और मर जाना है , उसे लगता है उसकी आत्मा तक का रास्ता उसकी आंखो से होकर जाता है, वह उसके लिये निशब्द होता है , उसके लिए बेतरह टाइप वाला लिखना चाहता है जो सिर्फ उसके लिए हो , उसे बहुत कुछ अधूरा छोड़ना है वी शुड और और वी शुड नॉट के दिन कि तरह , उनके बीच वायदों जैसे तन्ग शब्दों ने अपने अर्थ खो दिये है बहुत छोटे हो गये है , तन्ग लिखा नहीं जा रहा सच मे कितना तन्ग है , उन्हे पता है वो इन सब से कितना अलग है , वो लड़का लिखता है क्या फर्क पड़ता है हालांकि उसे बहुत फर्क पड़ता है , कुछ ऐसा ही उसे फिलहाल इस बारे मे बात नहीं करनी या वो इस बारे सोचना नहीं चाहता . सुनो इस बार मिलो तो कस कर गले लगा लेना 

Wednesday 14 January 2015

तुम्हारा होना

सुनो ना
कुछ बतमीज शब्द 
जो इतराकर सांँस लेने लगे थे
तुम्हारे एक तन्हा लफज़ से 
पानी हो गए है।
कविताए बेस्वाद
किताबे बेमतलब
अंँधेरे और अँधेरे हो गए है
राते तुम्हारे कभी ना लिखे
खत्तो सी लम्बी
चाँद छोटा
उम्मीदे बर्फ
और हँसी अपराधिक हो गई है
लहजा किताबी
चेहरा सवालों से पीला
दिन जेल से आजाद
सुखी हो गए है।