Sunday 9 August 2015

खालीपन

टूंटी से रिस्ता है
रात भर पानी
उसने लिखे थे
किताबों पर
कुछ पवित्र शब्द
अंधरे में नहीं दिखता
खून का रंग
महीनो से नहीं काटे हैं
नाख़ून
कमरों के कोनो में भरी है
भयानक ऊब
औरत करती है
कपड़ो पर बेढंग सी प्रेस
हर रोज
ऑफिस को जाते हैं
जिंदगी से ऊबे लोग
चुकाना होता है
हर मुस्कान का हिसाब
शीशे पर हैं उम्रदराज करींचे
माँ ने बांध कर भेजी थी
२ कुंवारी चादरें

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