मुझे डर लगता है
तुम्हारी इन बोलती आंखो से
मैं भर देना चाहता हूँ
इनमें तेजाब
दफना देना चाहता हूँ
हर वो कलम
जिस से मैने कभी तेरा नाम लिखा
हटा देना चाहता हूँ
अपनी डायरी का वो पन्ना
जहाँ गाड़ा था
हमने अपना पहला चुंबन बड़े शौंक से
मैॆँ जला देना चाहता हूँ
वो काली कमीज
जिसे पहन कर मैं तुझसे मिलने आता था
मैं छिन लेना चाहता हूँ
उन चमकते सितारो से उनका नूर
कर देना चाहता हूँ
उन्हे बेजान
जिन्हें देखकर तेरी याद आती थी
बांध देना चाहता हूँ
अतीत मे जाकर
उन टिक-टिक करती सूँइयो को
जहाँ कभी तेरा इंतेजार हुआ करता था
मैँ तोड़ देना चाहता हूँ
उन छ्तो के मुंडेरे
जहाँ तपते थे हम
तुम्हे देखने क लिए
जेठ की दोपहर मे
भर देना चाहता हूँ
तेरी साइकिल के पहियों मै पेट्रोल
और रख देना चाहता हूँ
जलती मशाल तेरी दहलीज़ पर
गिरा देना चाहता हूँ
गली के तमाम खम्बे
जहाँ से तू मुड़कर देखती थी
लूट लेना चाहता हूँ
तेरे आँगन मै खिलते पेड़ की अस्मत को
फूँक कर एक एक पत्ता उसका
टांग देना चाहता हूँ
तेरे कमरे मे
अधजले कागज
जिसे तूने कभी प्रेम-पत्र का नाम दिया था
फेंक देना चाहता हूँ
अफवाहों से भरे बर्तन,
काट देना चाहता हूँ
तेरी तिलिस्मी जुबान
भर देना चाहता हूँ
तेरे सपनों मे जलती बस्तियाँ,
लाशें ,लहू
मातमी चींखे,
बिलखते बच्चे
काली फटी सलवार ,
खून से लथपथ चादर
करना चाहता हु कैद तुझे
चावल की गुड़िया मे
रंगना चाहता हूँ
सिंधुर से
और दफना देना चाहता हूँ
काली आमवास के दिन
किसी कुएँ के नजदीक
के मुझे डर लगता है
तुम्हारी इन बोलती आंखो से
तुम्हारी इन बोलती आंखो से
मैं भर देना चाहता हूँ
इनमें तेजाब
दफना देना चाहता हूँ
हर वो कलम
जिस से मैने कभी तेरा नाम लिखा
हटा देना चाहता हूँ
अपनी डायरी का वो पन्ना
जहाँ गाड़ा था
हमने अपना पहला चुंबन बड़े शौंक से
मैॆँ जला देना चाहता हूँ
वो काली कमीज
जिसे पहन कर मैं तुझसे मिलने आता था
मैं छिन लेना चाहता हूँ
उन चमकते सितारो से उनका नूर
कर देना चाहता हूँ
उन्हे बेजान
जिन्हें देखकर तेरी याद आती थी
बांध देना चाहता हूँ
अतीत मे जाकर
उन टिक-टिक करती सूँइयो को
जहाँ कभी तेरा इंतेजार हुआ करता था
मैँ तोड़ देना चाहता हूँ
उन छ्तो के मुंडेरे
जहाँ तपते थे हम
तुम्हे देखने क लिए
जेठ की दोपहर मे
भर देना चाहता हूँ
तेरी साइकिल के पहियों मै पेट्रोल
और रख देना चाहता हूँ
जलती मशाल तेरी दहलीज़ पर
गिरा देना चाहता हूँ
गली के तमाम खम्बे
जहाँ से तू मुड़कर देखती थी
लूट लेना चाहता हूँ
तेरे आँगन मै खिलते पेड़ की अस्मत को
फूँक कर एक एक पत्ता उसका
टांग देना चाहता हूँ
तेरे कमरे मे
अधजले कागज
जिसे तूने कभी प्रेम-पत्र का नाम दिया था
फेंक देना चाहता हूँ
अफवाहों से भरे बर्तन,
काट देना चाहता हूँ
तेरी तिलिस्मी जुबान
भर देना चाहता हूँ
तेरे सपनों मे जलती बस्तियाँ,
लाशें ,लहू
मातमी चींखे,
बिलखते बच्चे
काली फटी सलवार ,
खून से लथपथ चादर
करना चाहता हु कैद तुझे
चावल की गुड़िया मे
रंगना चाहता हूँ
सिंधुर से
और दफना देना चाहता हूँ
काली आमवास के दिन
किसी कुएँ के नजदीक
के मुझे डर लगता है
तुम्हारी इन बोलती आंखो से
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