Wednesday 21 May 2014

यकीन जानिए

यकीन जानिए 

एक दिन पहले से सता रहा था 
तुम्हारे ना बोलने का अहसास
और हमने सोच लिया था 
हम नहीं रोएँगे 
सरफिरे आशिको की तरह 
बंद कमरो मे , 
नहीं मांगेगे तुमसे ना बोलने का कारण 
लेकिन हमने मांग लिया 
और
हम हार गए
हम बनाना चाहते थे
तुम्हें हमसफर
पलट कर अपनी डायरी से अतीत के पन्ने
खोलकर हर एक दफन राज
करके अपने आप को नंगा
जला कर अपना अतीत
जो समेटा था - बेजान पन्नों पर
करना चाहता था एक नई शुरुवात
जो हो ना सकी
लेकिन तुम रहोगी मुझे याद ताउम्र
उस कहानी ,
कहानी के किरदारो की तरह
जो मेरी माँ ने मुझे कभी
बचपन मे सुनाई थी
............

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