Monday 13 April 2015

शून्य और कुछ के बीच

कभी कभी उदासी के कारण नहीं होते बस उदास होना होता है। वो लड़का तलाशता है कविताओं में जीवन और उस लड़की की आँखों में पहली मुलाकात , वो शून्य और कुछ के बीच कंही है, ना शहर में मौत आती है और ना नींद और रातें असहनीय होती जाती है बेतरह , उसने ना जाने कितनी रातें जलाकर खोज लिए हैं, सीलन भरी दीवार पर लटके अपनी उम्र खो चुके कैलण्डर के पीछे के कोने जँहा महज उदासी को छिपाया जा सकता है ख़त्म नहीं किया जा सकता जितनी आसानी से उस लड़के ने किसी अधजली रात नदी मे खुद को बहा दिया था  , रातें सर्द सुबह की हवा में तैरते धुँए से गहरी है जिनमे साँस लेना सूखे पत्तों पर लड़की का नाम लिखकर इकठ्ठा करना था। किसी उदास रात बहार तो निकलो और देखो तुम्हारी परछाई कैसे डूबती है।  इन डूबती रातों को सिगरेट से नहीं बहकाया जा सकता , सब बेमानी होता है इन रातों में आँखे पत्थरा जाती है और उसने पहली दफे जाना कि लडकी का ना होना किताबों से नही भरा जा सकता । 

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