Tuesday, 25 November 2014

तुम और तुम्हारा शहर

तुमसे 
तुम्हारे शहर से 
नहीं किया जा सकता प्रेम 
तुम्हारी कोख ने जन्मे है 
हमेशा से दंगे 
पैदा  की है 
नाजायज
खुद को तोड़ देने वाली चुप्पी 
जब से  सीखा है तुमने
तर्को को गढ़ना 
भूला है,
सिसकियों और चींख-पुकारों मे फर्क करना 
तब से बू 
आने लगी है
 तुम्हारे निकले शब्दों से 
जिन्हे भूलने-भुलाने 
दफनाने 
बहाने 
के असफल प्रयासों मे जलायी जाती है 
चाँद सी ठंडी रातें 
फूंके जाते है कलजे 
तलाशे जाते है विकल्प 
लिखे जाते है 
एक तर्फे लंबे लंबे खत 

Wednesday, 20 August 2014

चाहत

चाहत को बुना है कुछ यूँ
जैसे चिड़िया बुनती है
घोंसले किसी शाख पर
उसमे छिपाया है
अपना हर बार का मिलना
उस दोपहर का चूमना
तुम्हारी मचलती उंगलिया
मेरा धड़कता सीना
और चाहत है
की तुम इस चाहत को
अपना लो या
गला खोंटकर यहीं दफना दो
कहीं प्रेम से बुनी ये  चाहत
आत्मघाती हमले की तरह
निर्दयी ना हो जाए
और ना पकड़ ले
सनक का रास्ता
इस रास्ते की हर नई सीडी पर रखा कदम
तोड़ चुका होगा वापिस की पुरानी सीडी
वहाँ बंद हो चुका होगा
प्रेम का हर दरवाजा
फिर होगी
तो सिर्फ
हार और जीत
तुम्हें पाने की
वहाँ तुम नहीं होगी
मेरी खोसले सी बुनी चाहत नहीं होगी
होगी तो सिर्फ सनक
तुम्हें पाने की 

Thursday, 26 June 2014

FYUP- -यथार्थ अनेक होते है

फोर इयर अंडर ग्रेजुएट प्रोग्राम---मेरी नजर मे दिल्ली  यूनिवर्सिटी  एक महोल्ले  की तरह और एफ़वाईयूपी मेरी किसी छलती  पड़ोसन से कम नहीं था । इस  अल्हड़ चाँदनी को गटकने के लिए आइसा के आशिक़ों ने भरसर प्रयास किए । लिखे पीले पन्नो पर लंबे लंबे खत, किया खटे दही सा अघात प्रेम  और असल मे दिखाया इश्क़ कैसे किया जाता है और आखिर मे हर दुखद प्रेम कहानी की तरह ही इसका भी अंत हुआ और एबीवीपी के कुछ दबंगों ने इसे गटक लिया। दिनेश महोदया की ये  बिटिया जो नयी नयी जवान हो रही थी।  आशिक़ों से बचाने के लिए हर संभव कोशिश की लेकिन ये अल्हड़ चाँदनी कहाँ किस की सुनने वाली थी । नए बच्चे इस प्रेम कहानी को नहीं जानते और इस चुनाव मे उनका वोट डालना पहली बार किसी लड़की को चूमने जैसा होता है। सुना है दिनेश साहब जिनकी कब्र ये आशिक लोग डीयू के मैदानो मे खोदना चाहते है उन्होने गूगल से कोई गठबंधन किया है नौकरी दिलवाने का  । एक आशिक के निजी कारण जिसका आप सब को सम्मान करना चाहिए पहले ही हम बहुत दुखी है मोदी साहब भाजपा जिनकी माँ है,और पिता लापता है जिसे ढूँढने मे सीआईडी के पर्दियुमन साहब को लगाया गया है ।  उन्होने 8 का सिगरेट 12 का कर दिया है ।  मै अभिनव गोयल पूरे होशो हवास मे अपने निजी कारणों से इसका समर्थन कर रहा हु , निम्नलिखित है -देखिये नौकरी तो आपकी 3 साल पढ़ के भी नहीं मिलनी और चार साल पढ़ के भी नहीं मिलनी ।
बच्चे डीटीसी का पास एक साल और एंजॉय कर सकते है  और दिल्ली भर मे फ्री मे डीटीसी मे अपनी कला को निखार सकते है, जैसे महिलाओं से हिलायेँ कर देना या बस का बरा कर देना आदि। 
एक साल अधिक कॉलेज के समोसे के साथ चाय पी सकते है ।
चुनाव के समय एबीवीपी , एनएसयूआई वालो की सहायता से  रागनि एमएमएस जैसी फिल्मे फ्री मे देख सकेगें , वैसे मुझे जंजीर की टिकट मिली थी और  मै गया नहीं था मुझे जाना चाहिए था ना जाने का कारण मुझे सिर्फ एक टिकिट मिलना था , दो मिलती तो अपनी किसी साथी के साथ जरूर जाता । 
किसी लड़की के लिए बुने खामोश सपनों को एक साल और गफलत मे रख सकते है ।
और बात रही बच्चों को सेंसेटिव बनाने की तो बात मे दम है ,, ये चार साल वाले फ्री के लेप्टोप मे 18-18 जीबी सनी लिओनि को भर कर रखेगे तो यकीन जानिए पूरे शरीर का विकास होगा । 
एक साल और कॉलेज के वाई-फाई से फ्री मे रंगीन फिल्मे, व्ट्स एप , फ़ेसबुक आदि चला सकते है । 
4 बजे तक आप कॉलेज मे रुकेंगे तो कुछ बच्चे अकेले तन्हा कमरो को रोशन कर सकते है - बहुत सस्ते मे एक जिस्म दो जान वाला फील ले सकते है - सिर्फ फील उस से आगे के लिए आपको थोड़ा सेटिंग बिठाना पड़ेगा ।  
दरियागंज के मूत्रालयों मे मूतने का मजा अपने कॉलेज मे एक साल और ले पाएगे । 
लड़कियां एक और साल तक अपने प्रोफेसरों के लिए सहेज कर रखी फेंटेसी को अपने अपने कॉलेज के क्न्फ़ेशन पेज पर उतार कर अधिक  से अधिक लाइक पा सकती है ।
मेरी तुलसी जी से विनती है की आप बच्चों की जिंदगी से ऐसा खिलवाड़ मत कीजिये । 
आप हमारे बीच मे मत आइये हम अपनी परेशानियों को एबीवीपी की मदद से हवन के जरिये दूर करना जानते है ,,
हमरी मानो तो भई ई साला पाँच साल का कर दो । 

Likजब बच्चे को इस तरह का वातावरण मिलेगा तो यकीनन जो मैथ्स की थ्योरम 18 साल मे नहीं सीखा वो 2 महीने मे सीख जाएगा और बात तो चिंगारी की है क्या पता कब किस मैडम को देख के लग जाए ।

Thursday, 12 June 2014

मेरा अलमिरा


जिसमे रखे है सुरखित 
तुम्हारे लिए किसी जंगल 
से खोज कर लाये
शब्द,
और 
हमारी तमाम मुलाकातें 
तोहफे , किताबें , आधी रात की अधूरी कवितायें , 
रद्दी बन चुके अखबार 
और वो कमीज आखिर की 
जिसे नहीं पहना गया है
तुम्हारे आखिरी बार चूमने के बाद से
जो पड़ी है किसी मरीज की तरह
मैले बिस्तर पर भूखी
जिसे इंतेजार है
तुम्हारे खत का
के जल्दी से आए
उसे रख ले अपनी जेब मे
खाये हर रोज एक शब्द
और रह सके जिंदा
खुछ और समय 

Wednesday, 21 May 2014

साजिश

तुम आओगी
दबे पाँव
किसी रोज
रख कर हर विश्वास ताक पर
मुझे चूमने
मैं कर लूँगा
तुम्हें कैद
आईने मे ,
और तुम्हारे लाख मना करने  पर भी
नहीं करूंगा आजाद
के जब तक
मैं
तुम्हें
तुम्हारे जितना नहीं चूम लेता
और इस बार
मेरे पास नहीं होगा
तुम्हारे लिए कोई
तोहफा 

अधूरा छूटा चुम्बन

मुझे यकीन है 
तुम आओगी, 
उस शाम का अधूरा छूटा चुम्बन पूरा करने 
उन्हीं घर की उतरती सीडियों पर 
लेकर बेस्वाद सा बहाना, 
चीनी ,पत्ती या पुरानी किताब का 
चूमोगी मुझे बेसब्री से 
और समेट लोगी 
मुझे अपने आलिंगन मे 
हर बार की तरह ,
लेकिन इस बार आंखे खोलकर ,
मैं देखना चाहता हूँ
तुम्हारी आंखो मे तपते रेगिस्तान को ,
भरना चाहता हूँ

उसे लाल स्याहीं से
डूबना चाहता हूँ
उसमे कागज की कश्ती की तरह
जल्दी से ,बहुत जल्दी से ...........

बिगुल

मै फेंक देना चाहता हूँ ,
अपनी महबूब का फोटो अपने पर्स से ,
और लगा लेना चाहता हूँ
मंगल पांडे को
खाना चाहता हूँ
भर पेट कारतूस
भरना चाहता हूँ
अपनी जेबे गुलाल से
रंग देना चाहता हूँ
हर मुसाफिर का मुँह 
मैं जला देना चाहता हूँ
आजादी के दिन के तमाम अखबार
मैं डाल देना चाहता हूँ
जलते टायर उनके गले मे
जिन्होनें अपने आप को अंदर से मार लिया है
और सीख लिया है
हर लूट पर चुप रहना
मैं पीना चाहता हूँ
पानी सिंधूर घोलकर
फुंकना चाहता हूँ बिगुल
बीच चोराहे पर खड़ा होकर
के साथी बिना लड़े कुछ नहीं मिलता
बिना लड़े लूट जाया करती हैं
अस्मते बंद तिजोरियों की
जल जाया करती है
बस्तिया मेहनत कश इंसानों की
के साथी बिना लड़े खुछ नहीं मिलता 

बेनाम कविता

मुझे डर लगता है 
तुम्हारी इन बोलती आंखो से 
मैं भर देना चाहता हूँ
इनमें तेजाब 
दफना देना चाहता हूँ 
हर वो कलम 
जिस से मैने कभी तेरा नाम लिखा  
हटा देना चाहता हूँ
अपनी डायरी का वो पन्ना 
जहाँ गाड़ा था
हमने अपना पहला चुंबन बड़े शौंक से
मैॆँ जला देना चाहता हूँ
वो काली कमीज
जिसे पहन कर मैं तुझसे मिलने आता था
मैं छिन लेना चाहता हूँ
उन चमकते सितारो से उनका नूर
कर देना चाहता हूँ

उन्हे बेजान
जिन्हें देखकर तेरी याद आती थी
बांध देना चाहता हूँ
अतीत मे जाकर
उन टिक-टिक करती सूँइयो को
जहाँ कभी तेरा इंतेजार हुआ करता था
मैँ तोड़ देना चाहता हूँ
उन छ्तो के मुंडेरे
जहाँ तपते थे हम

तुम्हे देखने क लिए
जेठ की दोपहर मे
भर देना चाहता हूँ
तेरी साइकिल के पहियों मै पेट्रोल
और रख देना चाहता हूँ
जलती मशाल तेरी दहलीज़ पर
गिरा देना चाहता हूँ
गली के तमाम खम्बे
जहाँ से तू मुड़कर देखती थी
लूट लेना चाहता हूँ
तेरे आँगन मै खिलते पेड़ की अस्मत को
फूँक कर एक एक पत्ता उसका
टांग देना चाहता हूँ 

तेरे कमरे मे
अधजले कागज
जिसे तूने कभी प्रेम-पत्र का नाम दिया था
फेंक देना चाहता हूँ
अफवाहों से भरे बर्तन,
काट देना चाहता हूँ
तेरी तिलिस्मी जुबान
भर देना चाहता हूँ
तेरे सपनों मे जलती बस्तियाँ,
लाशें ,लहू

मातमी चींखे,
बिलखते बच्चे 

काली फटी सलवार ,
खून से लथपथ चादर
करना चाहता हु कैद तुझे
चावल की गुड़िया मे
रंगना चाहता हूँ

सिंधुर से
और दफना देना चाहता हूँ
काली आमवास के दिन
किसी कुएँ के नजदीक
के मुझे डर लगता है
तुम्हारी इन बोलती आंखो से 

यकीन जानिए

यकीन जानिए 

एक दिन पहले से सता रहा था 
तुम्हारे ना बोलने का अहसास
और हमने सोच लिया था 
हम नहीं रोएँगे 
सरफिरे आशिको की तरह 
बंद कमरो मे , 
नहीं मांगेगे तुमसे ना बोलने का कारण 
लेकिन हमने मांग लिया 
और
हम हार गए
हम बनाना चाहते थे
तुम्हें हमसफर
पलट कर अपनी डायरी से अतीत के पन्ने
खोलकर हर एक दफन राज
करके अपने आप को नंगा
जला कर अपना अतीत
जो समेटा था - बेजान पन्नों पर
करना चाहता था एक नई शुरुवात
जो हो ना सकी
लेकिन तुम रहोगी मुझे याद ताउम्र
उस कहानी ,
कहानी के किरदारो की तरह
जो मेरी माँ ने मुझे कभी
बचपन मे सुनाई थी
............

मेरे गाँव की सुनसान सड़क-

मेरे गाँव की सुनसान सड़क-
हम मिलते है रात मे अक्सर 
वो करती है मुझसे बातें 
ठहर कर 
वहाँ चलने वाली ठंडी हवाएँ 
चूमती है मुझे 
मेरी अघोषित प्रेयसी से बेहतर 
उसकी कोख मे पल रहे 
कीट पतंगे 
करते हैं मेरा इंतेजार बेसब्री से
वो नहीं है नाराज मुझसे
के मे नहीं जानता
हम पहली द्फ़े कब मिले थे
ना याद है मुझे अपनी सालगिरा
लेकिन
दुत्कार देती है मुझे वो
जब पहन पुमा के सेंडिल
मैं जाता हूँ उस से मिलने
क्योंकि
उसे पसंद है ग्रामीण चप्पल
उसे नहीं अच्छी लगती सिगरेट
वो पीती है

अधजली बीड़ियाँ
जो छोड़ जाते हैं
खुछ अच्छे लोग

वो शहर नही जाती 
और जाना भी नही चाहती
वो मेरे गाँव की सुनसान सड़क
हम करते है बातें रात मे अक्सर

ठहर कर ------

--अभिनव गोयल

समय 1-34 रात के और मुझे सता रही है तुम्हारी याद -- उस रात की अधूरी कविता ।
डरती है मेरी सड़क इस शहर से , मे बुलाता हु इसे प्यार से _____
सुना है तुम्हारे शहर मे जलेबी देर से देने पर गोली मार दी जाती है- असुविधा के लिए खेद है- सोचने का दिल नहीं है -- कभी कभी बिना सोचे भी लिखना चाहिए ज्यादा नहीं लिखूगा मुझे याद आ रहा है की कनही किसी को बुरा ना लग जाए । यकीन जानिए शिकायत का मौका नहीं देनेगे ।

Saturday, 4 January 2014

बिस्तर से ऊपर उठती आज कि औरत

बिस्तर से ऊपर उठती आज कि औरत

आज खुछ बात दिल से , कसम उस चहीती पड़ोसन की जिसने मुझे 3 बार मना किया। जरूर पढे और मुझे ठीक करे , अपनी राय सांझा करने वाले को मेरी तरफ से धूम्रपान छोड़ने के लिए खास टिप 
बहुत अच्छा लगता है जब किसी महिला को मर्दो का काम करते देखता हु , दिल को खुशी होती है, वो डीटीसी मे महिला कंडक्टर हो सकती है , रेलवे मे कुली हो सकती है , ऑटो रिक्शा चालक हो सकती है , बार्डर पर हमारी सुरक्षा कर सकती है
इसमे कोई शक नहीं की आज की औरत अपनी देह को लेकर लिब्रेट हुई है , वो अपनी मर्जी से चुनने लगी है की किस के साथ सोना है या नहीं । ये ज्वलंत सच्चाई है की अगर औरत को आगे बढ़ना है तो मर्दो को कुचलना पड़ेगा । हम मर्दो ने औरत को सालो साल शहद की तरह चाटा है और शर्बत की तरह पिया है , साहेब अब शर्बत पीना बंद कीजिये जमाना कोक , पेप्सी का है। मुसीबत मे फस सकते है । बंद कीजिये ये सब कि 40 साला का बूढ़ा प्रतिभोज के नाम पर समाज को रिश्वत खिला कर आसानी से उस 14 साल की बच्ची जिसे हम जैसो ने उसकी अघोषित बीवी बना दिया है उसको बिस्तर मे नोचने का , लाइसेन्स दे देते है, और वो सस्ती संतरा छाप दारू पिये मुह मे बदबू को लिए बिस्तर मे अपनी हवस को बिखेरता है , आज वो बाप दादा का जमाना लद गया है कि सब्जी मे नमक कम तो पूरा कूक्कर रसोई से बाहर फेंक दिया जाता था । मुझे सच मे इंतेजर है उस दिन का जब औरत बोलेगी कि चल बे चूतिये उठ मे तेरे साथ सोने के लिए नहीं , तेरे गंदे अंडरवियर धोने के लिए नहीं मे भी खुछ हु मेरा भी दिल है । क्यू रिलेशन मे लड़की दबने लगती है जबकि सारा मालिकाना हक तो लड़की के पास होता है , और हम लड़के उस तरह रौब जमाने लगते है जैसे कोई किराएदार जिसमे मे वो रह रहा है और उस घर पर कब्जा जमा लेता है । तू इस से नहीं बोलेगी , ये नहीं पहनेगी , वो नहीं करेगी । क्या हम लड़को ने लड़की को सेंटर फ्रेश चिव्ङ्गुम समझ लिया है कि मिठास और ठंडक खतम तो फेंक दिया । मै कोममेंट्स मे इस नासमझ पुर्षवर्ग कि बोखलाहट को देखना चाहता हु, और असली बदलाव उस दिन आएगा जब महिला बिस्तर मे मर्द के ऊपर होगी और मर्द नीचे ।